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India stands at the crossroads of an employment revolution. With over 450 million people in
विनीत खेत का तीसरा चक्कर लगाकर आया तो दरवाज़े के पास लड़ रहे कुत्तों को देखकर खीझ गया। वह गुस्से में घर के भीतर गया और बाहर निकलते हुए लड़खड़ाकर गिरते – गिरते बचा। उसने दोगुने गुस्से के साथ दो – दो लाठी तीनों कुत्तों को मारी। ‘पियूँ – पियूँ’ करती आवाज़ें जब कुछ दूर जाकर लुप्त हो गईं तो लाठी के सहारे खड़ा विनीत घर के बाहर रखी चारपाई पर लेट गया।
हवाओं की सरसराहट के बाद उसकी चारपाई के चरमराने की आवाज़ ही थी जो रात की चुप्पी में दख़ल दे रही थी। इस आवाज़ को रोकने के लिए वह उठकर बैठ जाता है। फिर कुछ देर तक सोचते रहने के बाद वह खड़ा होता है और अंदर से दूध लाकर उसमें रोटी का एक टुकड़ा तोड़कर सामने कुँए के दूसरी ओर लुढ़के एक कटोरे को सीधा करके उसमें दूध – रोटी डाल देता है। वह जैसे ही पीछे मुड़ता है उसे दो चमकती आँखें दिखाई देती हैं।
इससे पहले वह कुछ समझ पाता उसपर आक्रमण हो जाता है। अचानक हुए इस हमले से वह हड़बड़ाकर गिर जाता है। सामने से आते सियार में उसे साक्षात यमराज के दर्शन होने लगते हैं लेकिन वह हिम्मत करके यमराज को हराने के उद्देशय से अपनी लाठी टटोलने लगता है। इतने घुप अँधेरे में लाठी तो क्या ही मिलनी थी लेकिन उस सियार रूपी यमराज को घेरकर उसपर हमले होने लगते हैं।
5 – 10 मिनट तक चली इस लड़ाई में सियार भाग खड़ा होता और 3 सिपाही अपने राजा को सहारा देने आगे बढ़ते हैं। कुछ नज़दीक आने पर उसे दुम हिलाते वही 3 कुत्ते नज़र आते हैं जिन्हें उसने मार पीटकर भगाया था। वह उनसे आँख चुराकर दूसरी और निकल जाता है और कुछ देर बाद दूध – रोटी का कटोरा उनके पास लाकर रख देता है। दूध रोटी खाते अपने सच्चे मित्रों को सहलाकर वह अपना अपराधबोध काम करने लगता है।
शिक्षा: विनीत की तरह गुस्से में, बिना सोचे – समझे फैसला लेकर बाद में पछताने की बजाय बेहतर होगा कि हम उन कुत्तों के व्यवहार से सीख लें कि अगर दोस्त कभी हमारे साथ बुरा सलूक भी कर दे तो बावजूद उसके उसे क्षमा करके मुसीबत में उसका साथ दें।
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मिलनपुर नाम के एक गाँव में चार दोस्त रहा करते थे। यह सभी दोस्त आज के समय में अपनी – अपनी नौकरी – पेशे के चलते अलग हो गए थे लेकिन आज भी इन लोगों में दोस्ती बरकरार थी।
आज राहुल का फ़ोन आने के बाद से विकास और धर्मेश उसके घर पहुँच चुके थे और दिनेश का इंतज़ार कर रहे थे। दिनेश दिल्ली में नौकरी करता है। हर साल वह चार दोस्त एक दिन गाँव में आकर ज़रूर मिलते हैं।
वह चार दोस्त सारा साल देश के किसी भी कोने में रहें लेकिन साल में कम – से – कम एक बार मिलना उन्होनें निश्चित कर रखा है। राहुल के फ़ोन आने के बाद से ही वह तत्काल का टिकट लेकर ट्रेन में गाँव जाने के लिए बैठ जाता है।
यह चार दोस्त तब दोस्त बने थे, जब यह लोग स्कूल में पढ़ा करते थे। धर्मेश, राहुल, दिनेश तो मिलनपुर गाँव में ही रहते थे लेकिन विकास पास के एक गाँव में रहता था, जो मिलनपुर से 4 किलोमीटर की दूरी पर था।
ऐसा नहीं था कि विकास के गाँव में कोई स्कूल नहीं था परन्तु मिलनपुर गाँव का स्कूल अपने अध्यापकों और पढ़ाई के लिए पूरे ज़िले में प्रसिद्ध था। इसके अलावा एक और कारण था जिसकी वजह से विकास अपने गाँव के स्कूल में ना जाकर मिलनपुर गाँव के स्कूल में पढ़ने जाता था।
वह कारण था, विकास के पिता जी, चाचा जी, दादा जी आदि सभी मिलनपुर गाँव के स्कूल में ही पढ़ने जाया करते थे और उस स्कूल के अध्यापक, प्रधानाचार्य आदि सभी के साथ उनका अच्छा – खासा व्यवहार था क्योंकि एक तो वह गाँव के सरपंच थे और दूसरा उनके साथ पढ़े हुए कई सहपाठी मिलनपुर के उस स्कूल में अध्यापक थे।
उन्हें ऐसा लगता था कि अगर विकास भी उसी स्कूल में पढ़ने जाएगा तो उसकी पढ़ाई और संगति की ख़बर मिलने के साथ – साथ उसपर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
ट्रेन के चलने के लगभग 1 घण्टे के बाद एक स्टेशन पर एक परिवार ट्रेन में चढ़ता है, जिसमें 3 से 4 बच्चे भागते – भागते आते हैं और ऊपर की सीट पर जाने के लिए लड़ने लगते हैं, इन बच्चों को लड़ता देख दिनेश को चार दोस्त की मीठी लड़ाई याद आ जाती है।
इन बच्चों में से एक लड़का जोकि कद – काठी में बड़ा होने का फ़ायदा उठाते हुए सबपर धौंस जमाते हुए सभी से पहले उस सीट पर जाकर जगह पर कब्ज़ा जमा लेता है।
बाकी के बच्चे धर्मेश, राहुल, दिनेश की तरह लाचार होकर उसके पीछे – पीछे जाकर बची हुई सीट पर बैठ जाते हैं। जैसे विकास द्वारा स्कूल के समय क्लास का सबसे पहला बेंच हथिया लेने पर वह तीनों बाकी के बेंचों पर बैठ जाते थे और सिर्फ़ 4 से 5 मिनट की नाराज़गी के बाद वह लोग पहले की ही तरह घुल – मिल कर खेलने लग जाया करते थे।
वहीं, धर्मेश, राहुल और दिनेश यह तीनों एक ही गाँव के होने के पर बचपन से ही साथ – साथ पले – बढ़े थे। वह स्कूल में साथ रहने के साथ – साथ स्कूल के बाद भी अपना अधिकतर समय साथ में ही बिताया करते थे।
हरे – भरे खेतों के पास से गुज़रती हुई ट्रेन में से बाहर झाँकते हुए धर्मेश की याद आ जाती है। धर्मेश जोकि उन चार दोस्त में से बड़ी जल्दी चिढ़ जाया करता था और इसी वजह से बाकी के दोस्त जानबूझकर उसे चिढ़ाया करते थे।
धर्मेश का परिवार खेती करके अपना गुज़ारा किया करता था। मिलनपुर गाँव और उसके आस – पास के गाँव में उनके अपने कई खेत थे, जिनमें से वो खेत जो दूसरे गाँव में मौजूद थे और जिनकी देख – रेख करना मुश्किल था, उन खेतों को उन्होंने ‘अधिया’ पर दे रखा था।
(‘अधिया’ शब्द भारत के उत्तर प्रदेश नामक राज्य में बोली जाने वाली अवधी भाषा का एक शब्द है। इस शब्द का मतलब होता है कि खेती की ऐसी ज़मीन जिसपर उस ज़मीन के मालिक और खेत जोतने – बोने वाले के बीच एक हिस्सेदारी कर ली जाती है।
इस हिस्सेदारी के अनुसार उस खेत में उगने वाली फसल का आधा हिस्सा उस ज़मीन के मालिक को मिलता है और आधा हिस्सा उस खेत में जोतने – बोने का काम करने वाल लोगों को मिलता है।)
यह चार दोस्त चाहे जितनी लड़ाई कर लें लेकिन स्कूल में आधी छुट्टी के समय यह चार दोस्त मिलकर खाना खाया करते थे। खाना खाते हुए धर्मेश जब भी अपना खाना लाता तो यह सभी उसे यह कहते हुए चिढ़ाते कि, “अरे यार!! तुम भी न, अपने खेतों की ताज़ी सब्ज़ी बेचना कब बन्द करोगे हमें भी तो कभी ताज़ी सब्ज़ी चखने का मौका दो।”
बस इतना सुनते ही खाना खाता धर्मेश अपना खाना छोड़ उन्हें मारने को उठता तो वह चार दोस्त खाना बीच में ही छोड़कर एक – दूसरे के पीछे भागने – दौड़ने लगते। “ज़्यादा भाग – दौड़ न करो, नहीं तो गिर जाओगे।” ऊपर की सीट पर बैठे उछल – कूद करते उन बच्चों को एक व्यक्ति ने डाँटा।
वह व्यक्ति उन लोगों के पिता जी ही होंगे क्योंकि जिस अधिकार से उन्होंने उन बच्चों को डाँटा और बच्चे एक ही बार में शान्त भी हो गए तो ऐसा प्रभाव तो एक पिता का ही होता है।
प्रभाव तो राहुल का हुआ करता था, राहुल जोकि एक बनिया परिवार से सम्बन्धित था, मिलनपुर से 6 किलोमीटर दूर ‘सिकड़ी’ नाम के शहर में प्रसिद्ध दुकानों में उनकी दुकान भी थी। सिकड़ी शहर उस इलाके के आस – पास के गाँवों के लिए एक मशहूर बाज़ार था।
वह चार दोस्त जब भी सिकड़ी के बाज़ार में जाते तो राहुल उन लोगों ख़ूब खिलाया – पिलाया करता बीच – बीच में वह उसे मिलावटी अनाज, दाल बेचने का ताना मारते लेकिन वह इस बात को मज़ाक में उड़ा देता था।
मज़ाक – मज़ाक में एक बार दिनेश ने अपने साथ काम करने वाले एक नाममात्र दोस्त को ताना मार दिया था जोकि अक्सर दूसरों को चिढ़ाता रहता था लेकिन जब उसके साथ दिनेश ने मज़ाक किया तो वह ऐसा नाराज़ हुआ कि अभी तक दिनेश से नहीं बोला।
इतने में पीछे कि सवारियों में से किसी की आवाज़ आती है, “चलो उठो अब। मिलनपुर स्टेशन आ गया है, उतरना नहीं क्या??”
दिनेश एकदम से अपनी यादों के झरोखे को बन्द करता है और अपना सामान समेटकर ट्रेन से नीचे उतरता है और स्टेशन के बाहर जाकर एक पेड़ की छाँव में गाँव जाने के लिए गाड़ी का इंतज़ार करने लगता है।
निष्कर्ष: यह कहानी चार दोस्त की पक्की दोस्ती पर आधारित है। इसके ज़रिये यह बताने की कोशिश की गई है कि जो दोस्त बचपन में बन जाते हैं, फिर दोबारा वैसे दोस्त बनने मुश्किल हो जाते हैं।
बड़े होने के बाद बने दोस्त उतने घनिष्ठ नहीं होते जितने बचपन के दोस्त होते हैं। जहाँ एक ओर मज़ाक करने पर लोग नाराज़ होने लगते हैं और मुड़कर बात तक नहीं करते। वहीं दूसरी और कुछ ऐसे जिगरी दोस्त भी हैं, जो लाख चिढ़ाए जाने पर भी अपना भाईचारा – व्यवहार ऐसा रखते हैं कि फ़ोन करने मात्र से दौड़े चले आते हैं।
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