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ऐसे स्थान जिनका इतिहास में ज़िक्र किया गया हो या इतिहास को रचने में जिनका अहम योगदान हो, उन्हें ऐतिहासिक स्थल कहा जाता है। हमारे देश भारत का इतिहास हज़ारों वर्ष पुराना है, इस कारण भी यह ऐतिहासिक स्थलों के बारे में काफ़ी समृद्ध है। हमारे भारत देश में अलग – अलग तरह के ऐतिहासिक स्थल हैं, जिनमें से हम 10 प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों पर चर्चा करेंगे। इनमें इमारतें, मन्दिर, गुफाएँ आदि शामिल हैं। इनमें से कुछ स्थानों के निर्माता भारतीय हैं तो कुछ विदेशी शासकों के द्वारा बनाई गई हैं, जिन्होंने भारत पर राज किया। आज हम उन्हीं ऐतिहासिक स्थलों के बारे में जानेंगें
यह एक प्रकार का मकबरा है। मकबरा अर्थात् कब्र के ऊपर बनाई गई एक गुम्बद रूपी ईमारत। इसे मुग़ल सम्राट शाहजहाँ ने अपनी बेगम मुमताज महल की याद में सन् 1632 में बनवाया था, जिस कारण इसे ‘प्यार का प्रतीक’ भी कहा जाता है। यह भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में आगरा नामक स्थान पर यमुना नदी के दक्षिणी तट पर स्थित है। इस ख़ूबसूरत इमारत को बनाने में लगभग 22 साल का समय लगा और वास्तुकार उस्ताद – अहमद लाहौरी ने 20,000 मज़दूरों के साथ मिलकर इसे तैयार किया था।
कहा जाता है कि शाहजहाँ ने इन 20,000 मज़दूरों के हाथ कटवा दिए थे ताकि संसार में कोई दूसरा व्यक्ति ऐसा ताजमहल ना बनवा सके। ताजमहल को बनाने में सफ़ेद संगमरमर का इस्तेमाल किया गया है, जिसके ऊपर दुर्लभ पत्थरों से नक्काशी की गई है। इसे योजनाबद्ध तरीके से बनाया गया है, जिसमें वास्तुकारों के साथ – साथ बागवानी योजनाकारों ने भी विशेष योगदान दिया। जिसके तहत गुंबद को चौतरफे बाग के बीच में बनाने की बजाए एक तरफ बनाया गया है और उसके चारों तरफ चार मीनारें बनाई गई हैं।
ताजमजाल में शाहजहाँ और मुमताज महल की कब्र स्थापित है। जिसके चारों ओर बेशक़ीमती पत्थर से फूल बनाए गए हैं। इसके मुख्य द्वार के उत्तरी तरफ दो पंक्तियों में गलियारे बनाए गए हैं। और उनके सामने चार भागों में बँटा एक बाग है। यदि पर्यटन की दृष्टि जाए तो लगभग 40,000 पर्यटक हररोज़ इसकी ख़ूबसूरती को निहारने आते हैं। जिसमें से 30% विदेशी पर्यटक होते हैं। यह ‘विश्व के 7 अजूबों’ में शामिल है और इसे ‘युनेस्को विश्व धरोहर’ में भी शामिल किया गया है। जिस कारण इसे भारत के 10 प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों में जगह दी गई है।
दिल्ली के सल्तनत ‘कुतुब – उद – दिन ऐबक’ के नाम पर इस ईमारत का नाम रखा गया जिन्होंने सन् 1199 में इसका निर्माण शुरू किया जिसे बाद में उनके पोते और उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने इसमें तीन मीनारों का निर्माण कर इसे पूरा करवाया। यह भारत की राजधानी दिल्ली के ‘मेहरौली’ नामक स्थान पर स्थित है, भारत के प्रमुख स्थानों में इसे शामिल किए जाने का मुख्य कारण है
इसका ईंटों की सबसे ऊँची ईमारतों में से एक होना है। इस कारण भी यह भारत के मुख्य पर्यटन स्थलों में से एक है। इसकी ऊँचाई 72.5 मीटर है, जिसमें पाँच मंजिलें हैं, इसके भीतर लगभग 379 सीढ़ियाँ हैं। इसको बनाने में संगमरमर और लाल बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। कुतुब मीनार के ऊपर अरबी भाषा में कुछ आयतें उकेरी गई हैं, जिन्हें विशेष तौर पर इस्लाम धर्म के एक ग्रंथ ‘कुरान’ से लिया गया है। इतनी ऊँची ईमारत होने के बावजूद यह सीधी नहीं है क्योंकि टूटने के बाद इल्तुतमिश, फ़िरोज़ शाह, सिकंदर लोधी और ब्रिटिश इंडियन आर्मी के मेजर रोबर्ट स्मिथ द्वारा अनेक बार बनवाया जाना इसका मुख्य कारण है।
इसके बगल में, कुव्वत – उल – इस्लाम नामक एक मस्जिद, अलाई दरवाज़ा, इल्तुतमिश का मकबरा और एक लौह स्तंभ भी है। इस लौह – स्तम्भ की विशेषता यह है कि लगभग 2000 साल पुराने इस स्तम्भ में आज तक जंग नहीं लगा। इसकी शिलालेख मीनार में अरबी और नागरी लिपि में लिखे शिलालेख हैं, जो इस ईमारत के बारे में बताते हैं।
इसकी ऊँची – ऊँची लाल दीवारों के कारण इसे ‘लाल किला’ कहा जाता है। यह देश की राजधानी दिल्ली में स्थित है। भारत की स्वतंत्रता और राजनीतिक विरासत का प्रतीक होना ही इसे भारत के प्रमुख ऐतिहासिक स्थल के योग्य बनाता है। हर साल स्वतंत्रता दिवस के मौके पर 15 अगस्त को प्रधानमंत्री द्वारा लाल किले पर देश का झण्डा फहराया जाता है और उसके बाद वह देश के लोगों को संबोधित करते हैं।
जब शाहजहाँ ने अपनी राजधानी को आगरा से दिल्ली शिफ्ट किया, उस समय लाल किले को बनवाया गया था। जिसे तैयार होने में लगभग 10 वर्षों का समय लगा था। इसे बनाने हेतु लाल बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है। इसका निर्माण सन् 1648 में शाहजहाँ ने करवाया था। यह लगभग 250 एकड़ की ज़मीन पर बना हुआ है,
जिसके भीतर अनेकों ख़ूबसूरत ऐतिहासिक इमारतें बनी हुई हैं जैसे: शाहजहांँ की पत्नियों और रखैलों के लिए बनाया गया रंग महल, संगमरमर को तराशकर बनाई गई तीन गुम्बद वाली मोती मस्जिद, सोने की परत और बहुमूल्य रत्नों से जड़ित दीवान-ए-ख़ास आदि। वर्ष 2007 में इसे ‘युनेस्को विश्व धरोहर’ में भी शामिल किया गया है।
सिखों के चौथे गुरू श्री रामदास जी ने 15वीं सदी में इसे बनवाया था। यह पंजाब के अमृतसर नामक स्थान पर स्थित है। इस गुरुद्वारे के चारों और एक सरोवर बनाया गया है और उस सरोवर के बीचोंबीच इस गुरुद्वारे का निर्माण किया गया है। यह गुरुद्वारा संगमरमर का बना है जिसके बाहरी हिस्से पर सोने की परत चढ़ाई गई है, जिस कारण इसे स्वर्ण मन्दिर (golden temple) भी कहा जाता है और इसी अनूठेपन की वजह से ही यह भारत के प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों में शामिल होने की पात्रता रखता है।
इसके परिसर में दो बड़े और अनेकों छोटे – छोटे तीर्थस्थल बने हुए हैं। जलाशय के चारों तरफ फैले इन तीर्थस्थलों को अमृतसर, अमृत सरोवर और अमृत झील के नाम से पुकारा जाता है। हरमन्दिर में जाने के लिए चार द्वार बने हुए हैं तथा हरेक द्वार में विश्राम की व्यवस्था की गई है। यहाँ पर पूरे साल, 24 घण्टे लंगर चलता रहता है और हररोज़ लगभग 40 – 50 हज़ार श्रद्धालु यहाँ लंगर के रूप में प्रसाद ग्रहण करते हैं और यहाँ पर आना तभी सफल माना जाता है
जब यहाँ पर बने सरोवर में स्नान किया जाए। इसके आलावा गुरुद्वारे के बाहर दाईं ओर अकाल तख्त स्थित है, जहाँ पर दरबार साहिब की स्थापना की गई है। जब हरमन्दिर को बनाया जा रहा था तब बाबा बुड्ढा जी इसी पेड़ के नीचे खड़े होकर काम करने वालों के ऊपर नज़र रखते थे, जिस कारण इस जगह का नाम ‘बेर बाबा बुड्ढा’ पड़ गया।
हवा महल को महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने सन् 1799 में बनवाया था। यह भारत के राजस्थान नामक राज्य की राजधानी जयपुर में स्थित है। इसकी लोकप्रियता का मुख्य कारण इसकी गुलाबी रंग की बालकनियाँ और जालीदार खिड़कियाँ भी हैं, जिनकी संख्या 953 है। जिन्हें खासतौर पर राजपूत सदस्यों और विशेष रूप से महिलाओं के लिए बनवाया गया था, ताकि महिलाएँ नीचे की गली में होने वाले नाटक, नृत्यों को देख सकें।
जब इस महल के अंदर जाया जाता है तो चाहे बाहर हवा ना चलती हो परन्तु इस महल के अन्दर हवा और ठंडक को महसूस किया जा सकता है और इसे विशेष गुण के कारण इसका नाम ‘हवा महल’ रखा गया। इस पाँच मंजिला ईमारत को ‘लाल चंद उस्ता’ नामक वास्तुकार द्वारा ‘राजमुकुट’ के आकर में बनाया गया है, जिसे गुलाबी रंग के बलुआ पत्थरों से बनाया गया है और इसी वजह से जयपुर को ‘पिंक सिटी’ भी कहा जाता है।
ठोस नींव की कमी के चलते इस महल को घुमावदार और 87 डिग्री के कोण पर झुका कर बनाया गया है। इस महल के भीतरी हिस्से को राजपुताना और इस्लामी मुगल वास्तुकला का
बेजोड़ नमूना कहा जा सकता है। 15 मीटर की ऊँचाई वाले इस पिरामिडनुमा पाँच मंजिला महल का बिना किसी ठोस आधार के 200 सालों तक खड़े रहना जैसी असाधारण विशेषता ही भारत में इसकी ऐतिहासिकता को प्रमुखता की ऊँचाई तक ले जाती है।
प्राचीन और मध्यकाल में सर्वाधिक मन्दिरों का निर्माण जहाँ पर हुआ, उस स्थान का नाम है – खुजराहो। यह भारत के मध्यप्रदेश राज्य के छतरपुर नामक स्थान पर स्थित है। खजुराहो मन्दिर को चंदेल वंश के द्वारा लगभग 950 ईसवी में बनवाया गया। कई लोगों का मानना है कि ये मंदिर अश्लील हैं क्योंकि इस मन्दिर के बाहर की दीवारों पर रति – क्रीड़ा (intimate pose) की विभिन्न मुद्राओं वाली मूर्तियाँ हैं जबकि मात्र 10% मूर्तियाँ ही कामुक विषयों पर बनाई गई हैं, बाकी की 90% कलाकृतियों को सामान्य रूप में बनाया गया है जो देवी – देवताओं पर आधारित हैं।
इन मूर्तियों को बनाने के पीछे का मकसद अश्लीलता फैलाना नहीं था बल्कि उनका मानना था कि मनुष्य के शरीर में ऐसा कुछ भी नहीं जिसे छिपाया जाए या जिस पर उसे शर्म आए। वह कहते थे कि अगर आप ‘यह’ प्राप्त करना चाहते हैं, तो आपको ‘यह’ करना होगा। यदि आप राजा बनने की इच्छा रखते हैं, तो आपको अपना जीवन इस भांति व्यतीत करना होगा। आप एक गृहस्थ जीवन चाहते हैं तो आपको इस प्रकार की ज़िंन्दगी जीनी होगी। यदि देखा जाए तो उन्होंने ज़िन्दगी के कुछ पैमाने निश्चित कर लिए थे और उन्हीं को इस मन्दिर की दीवारों पर अंकित कर दिया था।
इतने प्राचीन समय में उनकी इस खुली मानसिकता (Open Minded) के कारण उनके द्वारा बनाए गए इस मंदिर को भारत के प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों में स्थान दिया गया है। इसमें भिन्न – भिन्न देवी – देवताओं जैसे:- देवी जगदम्बा, कंदरिया महादेव, सूर्य देव आदि के मन्दिर बने हुए हैं और इनमें आस्था रखने वाले भक्तों का यहाँ सालभर ताँता लगा रहता है। इन मंदिरों में एक गर्भगृह, एक आंतरिक – कक्ष, महामंडप, इसके अतिरिक्त सभागृह और प्रदक्षिणा – पथ है, जहाँ बड़ी खिड़कियों द्वारा रौशनी आती है। इसी ढाँचे के आधार पर माना जाता है कि खजुराहो के मन्दिरों को बनाने के लिए ‘नागर शैली’ का प्रयोग किया गया था।
भारत के इतिहास का लगभग 200 वर्षों तक का इतिहास अंग्रेज़ों द्वारा रचा गया चाहे वह सुखद न रहा हो लेकिन उसे नकारा नहीं जा सकता, अपने इस शासन काल में उन्होंने बहुत से ऐतिहासिक स्थल जैसे:- चेन्नई में स्थित ‘सेंट जॉर्ज म्यूज़ियम’, कलकत्ता की ‘द नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ इंडिया’ आदि का निर्माण किया, इन्हीं में से एक प्रमुख ऐतिहासिक स्थल है – विक्टोरिया मेमोरियल। इसे सन् 1906 से 1921 के बीच उस समय इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया को समर्पित करने के लिए भारत के राज्य पश्चिम बंगाल में कलकत्ता नाम के शहर में बनाया गया था।
इंडो सैरेसेनिक रिवाइवलिस्ट स्टाइल में बनी इस ईमारत का निर्माण करने के लिए सफ़ेद मकराना संगमरमर का प्रयोग किया गया था। इसमें एक मुख्य गुम्बद है जिसके ऊपर 16 फीट ऊँची एक मूर्ति बनी है जो हवा चलने पर घूमती है। इसे ‘एंजेल ऑफ़ विक्ट्री’ के नाम से जाना जाता है। इस मेमोरियल के अन्दर 26 आर्ट गैलेरी जैसे: मूर्तिकला गैलरी, राष्ट्रीय नेताओं की गैलरी, पोर्ट्रेट गैलरी, हथियार और शस्त्रागार गैलरी, सेंट्रल हॉलआदि शामिल हैं।
जिनमें 30 हज़ार से भी ज़्यादा कलाकृतियाँ मौजूद हैं। इस मेमोरियल में एक रॉयल गैलरी भी बनाई गई है, जिसके अन्दर अल्बर्ट तथा महारानी विक्टोरिया के ढेर सारे चित्र रखे गए हैं। पुरातत्व (archeology) में विशेष रूप से रूचि रखने वाले सैलानी इसमें बने म्यूज़ियम को देखने विशेष रूप से आते हैं।
यह गुफाएँ भारत के महाराष्ट्र नामक राज्य के औरंगाबाद जिले में अजन्ता नामक गाँव के नज़दीक स्थित हैं। बौद्ध स्मारक के रूप में प्रचलित ये गुफाएँ 29 चट्टानों को काटकर बनाई गई हैं, जिसमें से 25 को आवासीय गुफाओं (रहने के लिए) के रूप में जबकि 4 को प्रार्थना कक्ष के लिए इस्तेमाल में लाया जाता था। इन्हें राष्ट्रकूट के शासकों द्वारा बनाया गया था।
इस गुफा में आकृतियाँ बनाने के लिए ‘फ्रेस्को पेंटिंग’ का उपयोग किया है, जिसमें लाल रंग का सर्वाधिक प्रयोग किया गया है। अजंता की अधिकतर गुफाओं में बुद्ध और जातक कहानियों को दिखाया गया है। “ हर साल इस ऐतिहासिक स्थल को देखने भारी मात्रा में लोग आते हैं। यदि इन गुफाओं के इतिहास पर गौर किया जाए तो इनका प्रयोग बौद्ध मठ की तरह होता था जहाँ छात्र और भिक्षु बौद्ध परंपरा का अध्ययन करने आते हैं।
यह जगह प्रकृति के बेहद करीब थी और भौतिकवादी दुनिया भी काफी दूर थी”।अजन्ता की इन गुफाओं को सन् 1983 में ‘युनेस्को की विश्व धरोहर स्थल’ में शामिल कर लिया गया है। ऐतिहासिक भारत की प्राचीन मूर्तिकला और वास्तुकला को जानने के लिए यह गुफाएँ प्रमुख स्थल हैं।
भारत की राजधानी ‘नई दिल्ली’ के कर्तव्यपथ पर 43 मीटर ऊँचा स्मारक है – इण्डिया गेट। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना की तरफ़ लड़ते हुए अपनी जान गंवाने वाले लगभग 70,000 भारतीय सैनिकों की याद में इसे अंग्रेज़ों द्वारा बनाया गया था। इण्डिया गेट के नीचे एक और युद्ध स्मारक – ‘अमर जवान ज्योति’ बनाई गई है, जिसे स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सन् 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में मारे गए भारतीय सैनिकों की याद में बनाया गया था।
गुमनाम सैनिकों की याद में यहाँ पर एक राइफ़ल रखी गई है जिसके ऊपर सैनिक की टोपी सजा दी गई है, जिसके चारों कोनों पर सदैव एक ज्योति जलती रहती है। इस अमर जवान ज्योति पर हर साल प्रधानमंत्री तथा तीनों सेनाध्यक्ष पुष्प चक्र चढ़ाकर श्रद्धांजलि देते हैं। इसके बगल में एक फव्वारा है जो रात को रंगीन रौशनी से जगमगा उठता है। इण्डिया गेट को दिल्ली के प्रमुख पिकनिक स्पॉट में से एक माना जाता है भी है, जहाँ पर बोटिंग का लुत्फ़ भी उठाया जा सकता है। वीर जवानों की स्मृतियों को संजोये भारत का यह एक प्रमुख ऐतिहासिक स्थल है।
अंग्रेज़ी वास्तुकार, हेनरी इरविन द्वारा इस पैलेस को कर्नाटक राज्य के मैसूर नामक शहर में बनाया गया था। इस पैलेस को ‘अम्बा पैलेस’ के नाम से भी जाना जाता है। पहले इस पैलेस को चन्दन की लकड़ी से बनाया गया था किन्तु किसी कारणवश उसमें आग लग गई थी और फिर इसको दोबारा से बनवाया गया था। इस पैलेस में तीन मंजिलें बनी हैं और उसके अलावा 145 फीट ऊँचा पाँच मंजिला टावर और संगमरमर के गुंबद हैं जो एक बहुत बड़े बगीचे से घिरा हुआ है।
अपने आप में अनोखा भारत का यह टावर रूपी ऐतिहासिक पैलेस विदेशी वास्तुकला की प्रमुखता लिए हुए है। इस पैलेस के ऊपरी भाग में गुलाबी रंग के स्लेटी पत्थर से गुंबद बनाई गई है। इस महल के भीतर एक बहुत बड़ा दुर्ग है, जिसके ऊपर बने गुम्बद को सोने की पत्तल से सजाया गया है। इस मैसूर पैलेस में राजाओं और आम आदमी के रहने के लिए अलग – अलग कक्ष बनाए गए हैं।
इसके दरवाज़ों पर ख़ूबसूरत नक्काशी की गई है। गहनों से जड़ा हुआ सोने का सिंहासन और शानदार पेंटिंग इसकी अन्य विशेषताएँ हैं। यहाँ पर ‘दशहरा उत्सव’ बड़ी धूम – धाम से मनाया जाता है, उस दिन 97,000 बिजली के बल्बों का उपयोग करके इस महल को रोशन किया जाता है। इसी खूबी के कारण अक्टूबर के महीने में यहाँ पर पर्यटकों की अच्छी – ख़ासी तादाद देखी जा सकती है।
आख़िरकार, हम कह सकते हैं कि अगर कोई व्यक्ति भारत के इन 10 प्रमुख ऐतिहासिक स्थलों पर घूम आए या इनके बारे में विस्तारपूर्वक पढ़ ले तो वह प्राचीनकाल से लेकर आधुनिक काल तक के भारत को अच्छे से जानने के साथ – साथ वह अलग – अलग तरह की भवन निर्माण शैलियों से भी परिचित हो जाएगा जिनका प्रयोग इन ऐतिहासिक स्थलों को बनाने में किया गया है।
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